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शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

धैर्य से बड़ी दवा नहीं

बीमारी हमारे कर्म का फल होती है। सद्कर्म का अच्छा फल मिलता है। जाने-अनजाने हम से जो बुरे कर्म हो जाते हैं। उनका फल है बीमारी। कई बार हमें लगता है कि हम तो सब कर्म अच्छे ही कर रहे हैं, फिर हमें यह बीमारी का फल क्यों मिला। असल में कुछ पूर्व जन्म के फल भी बीमारी के रूप में भोगने पड़ते हैं। समझदारी इन फलों को तटस्थता के साथ धैर्यपूर्वक भोगने में ही है। वरना संचित कर्मफल कभी न कभी तो भोगने ही होंगे। दवा और उपचार मन को समझाने के साधन मात्र हैं। प्रकृति विरुद्ध कार्य करने से शरीर में जो विकृति आती है, प्रकृतिस्थ होने से वह अपने आप दूर भी होने लगती है। प्रकृति, विकृति भी लाती है और सुकृति भी।

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