सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामय। अगर हम एक आदर्श जीवनशैली अपना लें, तो रोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। मैंने अपने कुछ अनुभूत प्रयोग यहां पेश करने की कोशिश की है। जिसे अपना कर आप भी स्वयं को चुस्त दुरुस्त रख सकते हैं। सुझावों का सदैव स्वागत है, कोई त्रुटि हो तो उसकी तरफ भी ध्यान दिलाइए। ईमेल-suresh.tamrakar01@gmail.com
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गुरुवार, 9 सितंबर 2010
टीकों के नाम पर करोड़ों का तिलक
मीडिया में खबरें हैं कि अब हेपिटाइटिस बी और हिब का हौव्वा खड़ा कर इनकी वेक्सिनें भारतीय बाजार में बेचने की साजिश चल रही है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन जिन वेक्सिनों को टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल करने की सिफारिशें कर रहा है, उनकी गुणवत्ता ही संदेह के घेरे में है। इन वेक्सिनों की खरीदी में ३५ गुना ज्यादा राशि खर्च करना पड़ेगी सो अलग। अर्थात ज्यादा कीमत देकर घटिया माल भारत को टिका दो। भारत में हेपिटाइटिस बी से मौतों के आंकडों पर नजर डालें तो दस हजार प्रतिवर्ष बैठता है। जबकि हर वर्ष कोई ढाई करोड़ मौतें अन्य कारणों से होती है। इतनी बड़ी संख्या में मौतों में यह आंकड़ा बहुत ही कम है। फिर इसके लिए इतना खर्च करने की क्या जरूरत है। लोगों को दाल रोटी तो ठीक से नसीब नहीं होती। बच्चों को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता और महँगे वेक्सिन उन्हें लगाने में कौनसी बुद्धिमानी है। श्रीलंका और भूटान का उदाहरण सामने है, जहाँ इन वेक्सिनों के दुष्परिणाम सामने आ चुके हैं।
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