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शनिवार, 24 मार्च 2012

उपवास में चना

सुन कर आपको आश्चर्य हो सकता है कि उपवास में चना भला कैसे चल सकता है। सवाल उठता है कि जब मूमफली के दाने चल सकते हैं तो चना क्यों नहीं। चने ने क्या गुनाह किया। फूड वेल्यू में वह मूमफली के दानों से जरा भी कमतर नहीं, बल्कि श्रेष्ठ है। उसी धरती माँ की कोख से जन्मा है, जिससे मूमफली पैदा हुई। चने में कार्बोहाइड्रेट्स, शुगर, फायबर, फेट, सेचुरेटेड, मोनोसेचुरेटेड, पोलीसेचुरेटेड, प्रोटीन, विटामिन्स बी-1, बी-2, नायसिन, फोलेट और विटामिन सी भी हैं। इसके अलावा केल्शियम, आयरन, मेगनेशियम, फासफोरस, पोटेशियम, सोडियम और जिंक जैसे खनिज हैं। ताजा अध्ययन से पता चला है कि यह कोलेस्ट्रोल कम करता है।
भोजन नली में जमा कफ को साफ करता है। मूमफली के दानों में फायबर 2.3 है तो चनों में 7.6 प्रतिशत है। उपवास का मकसद है तन और मन की शुद्धि। तन की शुद्धि दानों की तुलना में चना ज्यादा अच्छी तरह करता है। फिर चने से बैर क्यों। आयुर्वेद कहता है कि मूमफली को पचने में बहुत ज्यादा समय लगता है। उसकी तुलना में चना जल्दी पच जाता है। इसलिए उपवास में मूमफली के दाने और साबूदाने की खिचड़ी खाने वालों को मेरी सलाह है कि वे गुड़ और चना चबा कर खाएं, तो शरीर शुद्धि के मकसद की पूर्ति अच्छी तरह से होगी। वैसे तो उपवास में फलाहार श्रेष्ठ है, लेकिन कुछ लोगों को फलाहार से संतोष नहीं होता। ऐसे व्यक्ति गुड़ चने का सेवन कर सकते हैं। गुड़ चने का प्रसाद के रूप में तो हम खूब प्रयोग करते हैं। पता नहीं मूमफली के दाने खाने की प्रथा कैसे और कब चल पड़ी। शायद इसलिए कि दाने खाने के बाद जल्दी भूख नहीं लगती है।

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