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गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

किताबों से चिकित्सा


किताबों में बड़ी ताकत है। चाहे हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम हमले का आघात हो, हैती
के भूकम्प की पीड़ा हो या पाकिस्तान की भयावह बाढ़ की विभीषिका के कष्ट, सभी से मुक्ति दिलाती है
किताबें। अमेरिका के शिक्षाविद एलिस वेंस पिछले 45 सालों से बुक थेरेपी का अभियान चला रहे हैं।
और उन्हें चौंकाने वाले परिणाम मिले हैं। उनका अनुभव कहता है कि पूरी दुनिया में किताबों ने लाखों
जीवन को बचाया है और करोड़ों पीड़ितों के दुख दूर किए हैं। एलिस वेंस ने फिलस्तीन, हैती और


पाकिस्तान के बच्चों पर अपनी इस विधा को आजमाया और उन्हें आश्चर्यजनक नतीजे मिले। कुछ
एनजीओ के साथ मिल कर उन्होंने हिरोशिमा के बच्चों के बीच यह अभियान चलाया था।
बुक थेरेपी पर हाल ही नईदिल्ली में तीन दिवसीय एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन 9 फरवरी से शुरू हुआ
है। इसमें दुनिया भर से अनेक विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं। वे अपने अनुभवों का निचोड़ इस सम्मेलन में पेश
करेंगे। सम्मेलन का आयोजन लेखक एवं चित्रकारों की संस्था 'अविक' द्वारा किया गया है। बाल
मनोवैज्ञानिक इरा सक्सेना के अनुसार पुस्तकें बच्चों का ध्यान बंटाती है। प्राकृतिक और मानव निर्मित
आपदाओं से उन्हें जो मानसिक आघात लगता है और उनमें जो अवसाद की स्थिति पैदा होती है,
पुस्तकें उससे निकलने में बड़ी मददगार होती हैं। उनकी जरूरत के अनुसार उन्हें पठन सामग्री उपलब्ध
कराई जानी चाहिए। इसके लिए बकायदा कार्यक्रम बनाए जाने चाहिए। उन्होंने जम्मू-कश्मीर कुपवाड़ा इलाकों के बच्चों का उदाहरण पेश किया। इन बच्चों के बीच जब उनकी टीम गई तो आतंकवाद की दहशत के मारे ये बच्चे खुल कर कुछ बोल नहीं पाते थे। दबे सहमें से सदा खामोश रहते। बाल सुलभ चंचलता जाने कहाँ खो गई थी। जब हमने कुछ विशेष तरह की पुस्तकें उन्हें पढ़ने को दी, तो वे अपनी खोल से निकल कर बाहर आ गए। उनका मौन मुखर हो उठा। खोया बचपन लौट आया। अब वे अपनी बात बताते हैं। आजकल बच्चे टीवी से चिपके रहते हैं, उन्हें पुस्तकों की ओर लौटाना चाहिए।

कौनसी किताबेंः इन बच्चों को रस्किन बाण्ड और आरके नारायण सहित विभिन्न लेखकों की कुछ पुस्तकें दी गई थीं। दिल्ली के सम्मेलन में कोई तीन सौ ऐसी पुस्तकें और स्केच आदि प्रदर्शित किए गए हैं।

मेरा अनुभवः पत्नी के मनोरोग के कारण एक समय मैं अत्यंत परेशान हो गया था। बच्चे छोटे थे और पत्नी का रोग ठीक ही नहीं हो रहा था। काफी निराशा छा गई। कई बार मन में सामूहिक आत्मघात जैसे ख्याल भी आए। फिर एक दिन आशा की किरण लेकर किताबें आईं। गाँधी हाल में विवेकानंद साहित्य की प्रदर्शनी लगी थी। मैं वहाँ से स्वामी विवेकानंद की कुछ पुस्तकें खरीद लाया। जब उन्हें पढ़ा तो जीवन की दिशा ही बदल गई। सारी निराशा काफूर हो गई और मुसीबतों से लड़ने का हौसला मिला।

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