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शनिवार, 24 सितंबर 2011

जो मिल गया उसीको मुकद्दर समझ लिया


आज देव साहब की वर्षगाँठ है। उम्र के अस्सीवें दशक में भी बिल्कुल फिट हैं। बकायदा फिल्मों का निर्माण जारी है। काजल की कोठरी में रहते हुए भी देव साहब ने स्वयं को कोरा रखा। सादा और संयमित जीवन। कोई पार्टी-शार्टी नहीं। बस अपने काम से काम। गीता के इस ब्रम्ह वाक्य को जीवन में उतार लिया। कर्म करते रहे, फल की कभी चिंता नहीं की। कल उनकी लोकप्रिय फिल्म हमदोनों के गाने रंगीन शक्ल में यूट्यूब पर देखे। सचमुच क्या गजब फिल्म थी। जो मिल गया उसीको मुक्कदर समझ लिया। जो खो गया मैं उसको भूलाता चला गया। कालेज के दिनों में हम दोस्त लोग देव साहब के दीवानें थे। कोई फिल्म लगी नहीं कि चले पहले ही दिन देखने। देव आनंद की हेयर स्टाइल की नकल करने की कोशिश करते। बारबर भी लड़कों से पूछता था, कौन सी कटिंग बनाऊँ देव, दिलीप या सुनील दत्त कट। बार-बार गरदन को टेड़ी करना, संवाद अदायगी का उनका अनूठा अंदाज। पहले स्वर तेज, फिर धीरे-धीरे उसका धीमा होते जाना। किशोर दा की आवाज और सचिन दा के संगीत ने उनकी फिल्मों के गीत संगीत को अमर कर दिया। वैसे तो रफी और हेमंतकुमार ने भी उनके लिए अनेक गीत गाए। पर जो मजा किशोर दा के प्ले बैक में मिला वह अन्य में उन्नीस रहा। सलील चौधरी ने माया फिल्म में देव आनंद के प्लेबैक के लिए द्विजेन मुखर्जी के स्वर का इस्तेमाल किया था। ऐ दिल कहाँ तेरी मंजिल। बड़ा खुबसूरत गीत है। यह लताजी की आवाज में भी है। द्विजेन की आवाज हेमंत दा से एकदम मेल खाती है। कईं लोग इसे हेमंत दा का गाया गीत ही समझ बैठते हैं। आज हेमंत दा की भी पुण्यतिथि है। और प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह का भी जन्मदिन है। वे भी उम्र के अस्सीवें दशक में देश की बागडोर संभाले हुए हैं। दो दिन बाद लताजी का जन्मदिन है। इन हस्तियों के जीवन से बड़ी प्रेरणा मिलती है। कर्मवाद के ऐसे अनूठे उदाहरण हमारे बीच ही बिखरे हुए हैं। जरूरत है बस उन्हें देखने समझने व जीवन में उतारने की।

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