tag:blogger.com,1999:blog-7455163369800103787.post4511027674653725817..comments2023-09-11T07:14:28.283-07:00Comments on यदाकदा: सत्तू मन मत्तूयदाकदाhttp://www.blogger.com/profile/14635976851384263758noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-7455163369800103787.post-74062600059304940022011-02-21T09:28:05.416-08:002011-02-21T09:28:05.416-08:00नानी के यहां मिलता था. न नानी रहीं, न मौसी, न मामा...नानी के यहां मिलता था. न नानी रहीं, न मौसी, न मामा... अब भला कौन दे ये चीजें... यादें ही रह गयीं... ननिहाल में एक घर में भाड़ (सही शब्द शायद यही है) होती थी, वहीं पूरे गांव के लोग जाते थे. बार्टर सिस्टम मैंने वहीं देखा था, अधिक नहीं कुल पच्चीस-छब्बीस साल पहले... गांव को गरीबी निगल गयी.. साथ में रिश्तों को भी..भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7455163369800103787.post-77793663956573320402011-02-21T00:27:16.974-08:002011-02-21T00:27:16.974-08:00सत्तू वैसे मेरे अलावा कईयों की भी पसंद होगी सर, फि...सत्तू वैसे मेरे अलावा कईयों की भी पसंद होगी सर, फिर भी गुड़ के घोल में मिलाकर खाने की तरकीब काफी अच्छी लगी। अब इसे आजमाऊँगा।<br /><br /><br /><br />धन्यवादJeeteshhttps://www.blogger.com/profile/12454198067929959171noreply@blogger.com